This poem was born out of my sadness on the current atmosphere prevalent in India. But, for every darkness, there is a light waiting for us to embrace it fully and realize its value.
कैसी वर्षगांठ आई रे, मेरी कैसी वर्षगांठ आई रे...
हडतालों, विवादों ने छिनी मुल्क की शांति रे।
ये कैसी वर्षगांठ आई रे।।
जिनका जिम्मा था सफाई का, उन्होंने गंदगी फेलाई रे।
शिक्षा के पावन मंदिर में, लगने लगे राष्ट्रविरोधी नारे रे।।
ये कैसी वर्षगांठ आई रे...
आरक्षण का गन्दा साँप, लगा फन उठाने रे।
बंद किया दिल्ली का पानी, आर्मी पड़ी बुलानी रे।।
ये कैसी वर्षगांठ आई रे...
शुक्र है मेरे गुरु का, जो शांति संदेशा लाये रे।
सबको गले लगाने वाले, विश्व सांस्कृतिक उत्सव लाये रे।।
कहे रुपेश नत्मस्तक होकर, वाह रे तेरी खुदाई रे।
तेरी करनी तू ही जाने, मैं तो गद-गद हुआ मेरे भाई रे।।
मेरी अच्छी वर्षगांठ आई रे...
Celebrating Peace | Celebrating Diversity | Celebrating Humanity |
कैसी वर्षगांठ आई रे, मेरी कैसी वर्षगांठ आई रे...
हडतालों, विवादों ने छिनी मुल्क की शांति रे।
ये कैसी वर्षगांठ आई रे।।
जिनका जिम्मा था सफाई का, उन्होंने गंदगी फेलाई रे।
शिक्षा के पावन मंदिर में, लगने लगे राष्ट्रविरोधी नारे रे।।
ये कैसी वर्षगांठ आई रे...
आरक्षण का गन्दा साँप, लगा फन उठाने रे।
बंद किया दिल्ली का पानी, आर्मी पड़ी बुलानी रे।।
ये कैसी वर्षगांठ आई रे...
शुक्र है मेरे गुरु का, जो शांति संदेशा लाये रे।
सबको गले लगाने वाले, विश्व सांस्कृतिक उत्सव लाये रे।।
कहे रुपेश नत्मस्तक होकर, वाह रे तेरी खुदाई रे।
तेरी करनी तू ही जाने, मैं तो गद-गद हुआ मेरे भाई रे।।
मेरी अच्छी वर्षगांठ आई रे...